kgf yash full movie in hindi
लड़का है, जो सबसे ज्यादा अमीर और सफल आदमी बनकर मरने का ख्वाब देखता है और यह सपना उसका खुद का नहीं बल्कि उसकी मां का है। मुंबई के सड़कों से लेकर KGF के मैदान तक वह बस अब अपने इसी लक्ष्य को पूरा करने में जुट जाता है।
प्रशांत नील की 'केजीएफ' में लीड स्टार की भूमिका में हैं यश, जिनसे दर्शकों की काफी उम्मीदें बंध गईं। क्या फिल्म दर्शकों की इस उम्मीद पर खरी उतर पाई? जी हां, टीम उनकी उम्मीदों पर पूरी तरह खरी उतरी है। फिल्म फर्स्ट हाफ में काफी तेजी से आगे बढ़ता है, जो थोड़ी लंबी खिंची हुई सी भी लगती है। फिल्म का सेकंड हाफ क्लाइमैक्स के लिए बिल्कुल फिट है।
फिल्म में सोने की खदान में फिल्माए गए दृश्य बेहद प्रभावी लगे हैं। बताते हैं, इन दृश्यों को प्रभावी बनाने के लिए सेट पर सचमुच तापमान काफी बढ़ा दिया गया था ताकि कलाकारों के चेहरे पर गर्मी और उमस से परेशान मजदूरों वाले भाव आएं। फिल्म का पहला हिस्सा जो मुख्यत: मुंबई और बंगलुरु में रॉकी की जिंदगी से संबंधित है, इसके फिल्मांकन में निर्देशक का खास नजरिया दिखता है।
सिनेमैटोग्राफी ने इन दृश्यों को और उम्दा बना दिया है। हालांकि फिल्म के इंटरवेल से पहले वाले हिस्से की सिनेमैटोग्राफी कई जगह बचकानी भी है। फिल्म का एक विशेष बैकग्राउंड म्यूजिक है जो कुछ खास मौकों पर बजता है। यह प्रभावी बन पड़ा है। फिल्म में हिंसा के दृश्य काफी ज्यादा हैं। एक दृश्य में तो हीरो रॉकी खुद ही गिन कर बताता है कि उसने अभी-अभी 23 लोगों को मारा है। हर 20 मिनट बाद एक मारकाट का दृश्य है और लोग गाजर-मूली की तरह मारे जाते हैं। फिल्म की अवधि दो घंटे 50 मिनट है जो काफी लंबी है।
हालांकि अगर आप दक्षिण भारतीय फिल्में पसंद करते हैं तो यह फिल्म आपको पसंद आएगी। अपने अलग अंदाज के लिए, और हां, बाहुबली की ही तरह केजीएफ का भी दूसरा पार्ट आएगा। इसे जिस मोड़ पर छोड़ा गया है, वह ‘कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा?’ जितना रोचक तो नहीं पर फिर भी एक उत्सुकता तो जगाता ही है। फिल्म का गीत-संगीत औसत ही है।
लड़का है, जो सबसे ज्यादा अमीर और सफल आदमी बनकर मरने का ख्वाब देखता है और यह सपना उसका खुद का नहीं बल्कि उसकी मां का है। मुंबई के सड़कों से लेकर KGF के मैदान तक वह बस अब अपने इसी लक्ष्य को पूरा करने में जुट जाता है।
प्रशांत नील की 'केजीएफ' में लीड स्टार की भूमिका में हैं यश, जिनसे दर्शकों की काफी उम्मीदें बंध गईं। क्या फिल्म दर्शकों की इस उम्मीद पर खरी उतर पाई? जी हां, टीम उनकी उम्मीदों पर पूरी तरह खरी उतरी है। फिल्म फर्स्ट हाफ में काफी तेजी से आगे बढ़ता है, जो थोड़ी लंबी खिंची हुई सी भी लगती है। फिल्म का सेकंड हाफ क्लाइमैक्स के लिए बिल्कुल फिट है।
फिल्म में सोने की खदान में फिल्माए गए दृश्य बेहद प्रभावी लगे हैं। बताते हैं, इन दृश्यों को प्रभावी बनाने के लिए सेट पर सचमुच तापमान काफी बढ़ा दिया गया था ताकि कलाकारों के चेहरे पर गर्मी और उमस से परेशान मजदूरों वाले भाव आएं। फिल्म का पहला हिस्सा जो मुख्यत: मुंबई और बंगलुरु में रॉकी की जिंदगी से संबंधित है, इसके फिल्मांकन में निर्देशक का खास नजरिया दिखता है।
सिनेमैटोग्राफी ने इन दृश्यों को और उम्दा बना दिया है। हालांकि फिल्म के इंटरवेल से पहले वाले हिस्से की सिनेमैटोग्राफी कई जगह बचकानी भी है। फिल्म का एक विशेष बैकग्राउंड म्यूजिक है जो कुछ खास मौकों पर बजता है। यह प्रभावी बन पड़ा है। फिल्म में हिंसा के दृश्य काफी ज्यादा हैं। एक दृश्य में तो हीरो रॉकी खुद ही गिन कर बताता है कि उसने अभी-अभी 23 लोगों को मारा है। हर 20 मिनट बाद एक मारकाट का दृश्य है और लोग गाजर-मूली की तरह मारे जाते हैं। फिल्म की अवधि दो घंटे 50 मिनट है जो काफी लंबी है।
हालांकि अगर आप दक्षिण भारतीय फिल्में पसंद करते हैं तो यह फिल्म आपको पसंद आएगी। अपने अलग अंदाज के लिए, और हां, बाहुबली की ही तरह केजीएफ का भी दूसरा पार्ट आएगा। इसे जिस मोड़ पर छोड़ा गया है, वह ‘कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा?’ जितना रोचक तो नहीं पर फिर भी एक उत्सुकता तो जगाता ही है। फिल्म का गीत-संगीत औसत ही है।
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